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सवालों के अंगारे

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धधक रहा है मन में
सवालों के अंगारे—
सच है कौन-?झुठ है क्या-?
मन में जो भ्रम पल रहे,
या, आँखों से दिखते नज़ारे
किस क़दर समझुँ–
और, क्या समझाऊँ दिल को
या, तन्हा जानुँ महफ़िल को–?
क्या सोचती दुनियाँ–
और,क्या बोलती बोलियाँ
कौन जुड़े हैं दिल से–
कितनें जुटे मुश्किल से
क्या कहूँ–बहते नीर से
या,शिक़वा तक़दीर से–?
वक़्त भी है तानें मारे
हम सबके पर–कौन हमारे–?
धधक रहा है मन में
सवालों के अंगारे——– |

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