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सवा ले चल हमें भी उस निशाँ तक

सवा ले चल हमें भी उस निशाँ तक
उमीदें रक़्स करती हैं जहाँ तक

तसव्वुर की रसाई है जहाँ तक
किसी दिन तो मैं पहुँचूंगा वहाँ तक

हमारी ज़िन्दगी की दास्ताँ तक
ना पहुँचा कोई भी आहो-फुगाँ तक

ज़माना ज़ुल्म ढाएगा कहाँ तक
वफ़ा की है रसाई आसमाँ तक

उड़ा कर ले गईं ज़िद्दी हवाएँ
मिरे जलते नशेमन का धुआँ तक

हज़ारों ज़ख़्म हैं सीने के अन्दर
कोई मरहम लगाएगा कहाँ तक

हमें तामीर करना था नशेमन
तिरे पाबन्द रहते हम कहाँ तक

मदावा कैसे हो जाता ग़मों का
कोई पहुँचा नहीं दर्दे-निहाँ तक

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