तब की बातें अलग थी
जब हम भी
बिना पते के,
पाती लिखा करते थे।
बुझते हुए दीये को
बाती दिया करते थे।
हम सादा लिफाफा
भेज दिया करते थे,
वे उस पर अपना नाम
लिख लिया करते थे।
तब की बातें अलग थी
जब हम भी
बिना पते के,
पाती लिखा करते थे।
बुझते हुए दीये को
बाती दिया करते थे।
हम सादा लिफाफा
भेज दिया करते थे,
वे उस पर अपना नाम
लिख लिया करते थे।