Site icon Saavan

सावन का सूरज

मेघों में फंसे सूरज,
तुम हो कहाँ?
सोये से अलसाए से,
रश्मी को समेटे हुए,
तुम हो कहाँ ?
मेरे उजालों से पूछों –
मेरी तपिश से पूंछो-
सूरज हूँ पर सूरज सा
दीखता नहीं तो क्या !
पिंघली सी तपन मेरी
दिखती है तो क्या !
मैं हूँ वही,
मैं हूँ वहीं,
मैं था जहाँ ।

– पूनम अग्रवाल ……

Exit mobile version