Site icon Saavan

साहिल पे मैं आता हूँ अक़्सर,

साहिल पे मैं आता हूँ अक़्सर,
पता नहीं किस चाहत में ,
किसकी जुस्तजू में,
बस सुकून मिलता है।
,
समंदर की लहरें कभी शांत रहती है,
कभी कभी कुछ सवाल करती है,
जैसे मेरे आने का सबब जानना चाहती हो,
और मैं हमेशा की तरह खामोश,
उनको सुनता रहता हूँ सुनता रहता हूँ।
,
टहलते हुए हवाएँ भी जब छू कर गुजरती है,
अचानक से कई ख्याल आते है,
और चले जाते है उनके साथ
जैसे बहते हुए उड़ते है,
और मैं देख भी नहीं पता हूँ
बस महसूस करता हूँ।
इक तन्हाई इक ख़लिश।
इक तन्हाई इक खलिश।।
@@@@RK@@@@

Exit mobile version