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सुखी रहे सब प्राणी

एकांतवास में रहकर भी
नहीं हुई तपस्या पूर्ण।
खान -पान में समय बिताया
सोया पूरम पूर्ण।।
घटा नहीं कोरोना जालिम
घट गया सीधा-पानी।
‘विनयचंद ‘कुछ ऐसा कर
जो सुखी बसे सब प्राणी।।

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