सुना है रहजन बहुत हैं तिरी राह पर मयकशी के जाम आँखों से लूटते हैं,
चलों लुटने के बहाने ही सहीं ‘ज़नाब’ तिरी जानिब फिर से हो कर गुजरते हैं,
सुना है रहजन बहुत हैं तिरी राह पर मयकशी के जाम आँखों से लूटते हैं,
चलों लुटने के बहाने ही सहीं ‘ज़नाब’ तिरी जानिब फिर से हो कर गुजरते हैं,