हर एक के लिए सुरक्षित सुनियोजित आयोजन
फिर भी क्यूं हम करते रहते भविष्य का प्रबंधन
दूरदर्शिता की हुईं हैं सभी को बिमारी
वर्ष अंत का आरक्षण शुरू में करायी
चहुंओर बंदी से हुई है कितनी धन की हानि
आदत ने कब कहां की है मन की गुलामी
लोगों को अनावश्यक घूमने की आदत
स्वयं के साथ औरों के काम में है बाधक
समय के साथ बढ़ी भेड़चाल की आदत
शिक्षक प्रकृति ने सिखाया दूरी है इबादत
जितनी है सीटें उतना ही हो आरक्षण
बचे परेशानी से सुरक्षित हो मानवधन
धन की लालच में न हो सुविधा का हनन
नैतिक मूल्यों का न होने दें और पतन