सुन सदा मेरी, वो चल निकले।
मेरे अपने ही संगदिल निकले।
जिन पे भरोसा किया था हमने,
वो भी साजिशों में शामिल निकले।
ना रही कोई उम्मीद उनसे अब,
मेरे जज़्बातों के, वो कातिल निकले।
हम तो नादान, नासमझ ठहरे,
समझदार हो, क्यों नाकाबिल निकले।
हमें तैरने का हुनर आता नहीं,
बीच मझधार छोड़, वो साहिल निकले।
उन्हें अंदाजा है, ‘देव’ की ताकत का,
पीठ पर वार कर, वो बुजदिल निकले।
देवेश साखरे ‘देव’