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सोच जरुरी …

देश में उथल पुथल का माहौल बना है,

जियो लेने को भी यहाँ भीड़ घना है,
व्यस्त यहाँ इंसान हर रोज़ इस तरह सा,
हज़ार का पत्ता भी अब हर ओर मना है।

देश प्रेम बातूनी दे रहे बहोत से सलाह हैं,
जियो सही, बैंक की लाइन पे कर रहा वही आह है,
तो मुखौड़ा क्यों ओढ़े हुए सब देश भक्ति का यहाँ,
हमेशा आलोचना करने की कैसी ये चाह है।

सरहद पे खड़ा है सैनिक, तो कहता उसका काम है,
जान भी दे दे तो करते नही उसका ये सम्मान है,
ट्विटर पे बैठे रहना, इनका बहोत ही जरुरी है,
पेट पालने को नही की मेहनत फिर कैसा ये आम है।

काला धन नही है रखा तो क्यों तू चिल्लाता है,
500, हज़ार पे क्यों फिर इतना बौखलता है,
देश हित में थोड़ी सी परेशानी से कुछ न जायेगा,
करता नही बहस आम लाइन में चुप चाप खड़ा हो जाता है।

और दिया था मौका, मज़बूरी की बात करने वालों को,
देश हित में योगदान देने को, सभी के सभी हवालों को,
पर नियत का कोई पैमाना कहाँ कोई बना पाया है,
और हम भी खारिज़ करते हैं इनके सभी सवालों को।

और यहाँ कुछ अच्छा करने को इक सोच जरुरी है,
सीधी ऊँगली से नही तो फिर परोक्ष की मज़बूरी है,
किसी को न लगे धक्का न हो कोई आहात,
तो फिर लगता है कि हर बात ही बस अधूरी है।

कृपया आम आदमी का मुखौटा तुम अब छोड़ दो,
अपनी कोशिश संजोके देश हित में ही थोड़ा मोड़ दो,
कभी कभी ही सही, अच्छे काम की प्रशंसा तो करो,
न की अपनी कुकौशल से हर बात को ही मरोड़ दो।

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