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सौगातें

बनाकर बातों से बातें, यहां बातें निकलती हैं,

यूँ ही, ज़िन्दगी के सफर की रातें निकलती हैं,

के जिंदा है जो ग़र कोई, तो अपनी वो ज़ुबाँ खोले,

यहाँ बेजुबानों की जुबाँ से भी खुराफातें निकलती हैं,

बड़ी मुददत से बैठी थीं, जो दिल के सुराखों में,

पड़े जम के जो बारिश, तो कहीं करामातें निकलती हैं,

हकीकत की ही आँखों से न सब मोती निकलते हैं,

कभी ख़्वाबों की सोहबत से भी सौगातें निकलती हैं।।

राही (अंजाना)

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