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स्पर्श

जीवन की पथरीली राहों पर,
जब चलते-चलते थक जाऊँ,
पग भटके और घबराऊँ मैं,
तब करुणामयी माँ के आँचल सा स्पर्श देना,
ऐ ईश मेरे ।

जब निराश हो,
किसी मोड़ पर रूक जाऊँ,
हताश हो, कुण्ठाओं के जाल से,
न निकल पाऊँ मैं,
तब सूर्य की सतरंगी किरणों सा,
स्फूर्तिवान स्पर्श दे,
श्री उमंग जगा देना,
ऐ ईश मेरे।

जब चंचल मन के अधीन हो,
अनंत अभिलाषाओं के क्षितिज में,
भ्रमण कर भरमाऊँ मैं,
तब गुरु सम निश्छल ज्ञान का स्पर्श देना,
ऐ ईश मेरे ।

जब जीवन के रहस्यमय सागर में,
डूबूँ उतराऊँ और गोते लगा-लगा,
थक जाऊँ मैं,तब नाविक बन,
पूर्ण प्रेम का स्पर्श दे,
मेरी नईया तीर लगाना,
ऐ ईश मेरे ।।

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