मेरे वजूद को धिक्कार कर
मेरे जहन ने
कुछ लकीरें खींची
और कहने लगीं
बढ़ चल उस सफ़र पर
जो तेरी यादों में
कब से जाग रही हैं
रेशमी धागों से बुन ले स्वप्न
और डूब जा
उन स्वप्नों के सुन्दर स्वर्ग में
भूल जा अपने मन के
छालों को,
लगा दे नेह का शीतल मरहम।।