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स्वार्थी इंसान

प्रकृति ने हमें क्या-क्या ना दिया!
यह कल-कल करती नदियां,
यह स्वच्छ धरा यह नीलगगन।
यह सुंदर चांद, तारे ,सूरज,

लंबे , हरे भरे हैं वृक्ष यहां।
फलों से लदे बागान यहां।
ऊंचे ऊंचे पर्वत है जहां,
मलय पवन बहती है वहां।
और हमने प्रकृति को क्या दिया?
नदियों को हमने गंदा किया,
ओजोन परत में छेद किया,
वृक्षों को हम ने काट दिया,
मलय पवन को प्रदूषित किया,
कितने अधिक स्वार्थी हैं हम!
जिस मां ने हमें इतना कुछ दिया,
हमने उसका ही कलेजा छलनी किया!
वाह रे !स्वार्थी इंसान।
निमिषा सिंघल

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