स्वार्थ मोहन 4 years ago कहीं तो छुपा है, किसी ना किसी कोने में, दुबका हुआ सा, मौके की तलाश में, कम या फिर ज्यादा, मगर छिपा जरूर है, हर मस्तिष्क में! और बचा तो ‘मानुष’ तू भी नहीं , इस स्वार्थ के जंजाल से।