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सड़कों पर खेल खुलेआम खेले जाते थे

सड़कों पर खेल खुलेआम खेले जाते थे,
होकर मिट्टी के रंग हम घर चले जाते थे,

पिता की डाँट जब पड़ती थी अक्सर,
माँ के आँचल में चुपके से हम छिप जाते थे,

मुँह मोड़ लेते हैं जहाँ आज ज़रा सी बात पर,
वहीं दोस्त कभी पहले मिसाल बन जाते थे॥
राही (अंजाना)

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