गलतियाँ बहुत कर लीं चलो एक दो सुधारी जाएँ,
रस्मों रिवाजों की चादर सर से पूरी उतारी जाएँ,
जाये कहाँ, अब है कौन हमारा इस नए ज़माने में,
चलो यादें पुरानी उकेर कर रखी थीं संवारी जाएँ,
कुछ तो ऐसा किया जाए कोई हुनर कमाया जाए,
हथेलियाँ किसी के आगे भी कभी न पसारी जाएँ।।
राही अंजाना