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“हमदर्द का दर्द”

कितना लिखती हो
वो ये कहते रहते हैं
सावन पर क्यों रहती हो
बस यही बोला करते हैं
इतनी कविताएं तुम्हारे
मन में कहाँ से आती हैं
जब बैठती हो तन्हा
तो कविताएं कैसे बन जाती हैं
पूँछ-पूँछकर तंग कर रहे थे
वो मुझको पका रहे थे
कविता मैं लिख रही थी
वो मोबाइल लेकर भाग रहे थे
आया गुस्सा मुझे जोर से
आँखें दिखलाकर चिल्लाई
जो मन में आया वो बोला
गाली भी उनको दो-चार सुनाई
फिर बोली:- सुन लो ‘पतली कमर’
मैं कविताएं कहाँ लिखती हूँ
मैं तो तेरा ही दिया हर दर्द लिखती हूँ|

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