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हम उन लम्हों

हम उन लम्हों की याद को
जेहन में यु संजोये बैठे है
रहकर भी दूर जैसे
आँखों में बसता है कोई
उन लम्हों की सांसें हमें
हरदम चलती नज़र आती है
जो अहसास कराती है अपने
और लम्हो के जीवित होने का
लगता इन लम्हो की धड़कन
रूक जाने से शायद
रुक जाएगी मेरी धड़कन भी
सोचता हूँ क्या बात है खास
उन बीत गए लम्हो में
क्यों इन्हे सजोने की इच्छा
इस कदर रखता हूँ मैं
आखिर क्यों उन लम्हो को
कफ़न ओढ़ा दफ़न नहीं कर पाता
शायद कोई ठोस कारण है इसका
शायद इसे दफ़न नहीं कर पाता इसलिए
क्योकि ये मेरे जीवित होने का
जीवंत भ्रम पालने के लिए
लगता एक अनिवार्य दस्तावेज बन गया है
राजेश ‘अरमान’२३/०७/१९८९

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