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हम उस देश के वासी है ।।

हम भारत के वासी है, संस्कृति हमारी पहचान है ।
सारी जहां में फैली हुई, हमारी मान-सम्मान है ।
सादगी है हमारी सबसे निराली, अजब न्यारी है संस्कृति हमारी ।
प्रशंसक है सारी दुनिया हमारी, यही भारतभूमि की कहानी है हमारी ।।1।।

हमारी संस्कृति है सबसे पुरानी, सनातन धर्म है हमारी ।
हिन्द, हिन्दु, हिन्दुस्तां पहचान है हमारी ।
धरती से जुड़ाव से हमारा. धरती माता है हमारी ।
हम अन्न उगाते है, इसलिए किसानी पहचान है हमारी ।।2।।

धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र, मोक्षशास्त्र प्राचीन ग्रन्थ है हमारी ।
वेदव्यास, चाणक्य, वात्स्यायन प्राचीन रचनाकार है हमारे ।
सारी जहां में फैली है, वेदों की प्रकाश हमारी ।
सृष्टि के कण-कण में गूँजे, वो अलौकिक ध्वनि है हमारी ।।3।।

सती अनुसूईया, सावित्री, सति मईया व जानकी की पवित्र धरती है हमारी ।
तारा,मन्दोदरी, अहल्या, कुन्ती, द्रौपदी पंचकन्या की पवित्र महि है हमारी ।
गणिका, अजामिल, अहल्या भी तर गई वो दुखहरनी, क्लेशकारिणी धरणी है हमारी ।।
नारियों को जिस धरा पे सम्मान हो, वो धरा है हमारी ।।4।।

कालि, सूर, कबीर, तुलसी रहीम आदि कवि समाज सुधारक हुये वो धरती है हमारी
इनके कृतियों से चमचमाती जगत है हमारी, इनके रचना है जग में सबसे न्यारी ।
सीखते है जहां इनसे प्रेम, प्रेम के पुजारी, और प्रेममग्न होते है यहीं है हमारी महि की निशानी ।
दुनिया में सबसे बड़ा ग्रन्थालय है हमारा कवियों की पावन है धरा है हमारी ।।5।।

प्रहलाद, ध्रुव, मीरा आदि हरिभक्त हुये वो धरती है हमारी ।
प्रहलाद को देव नरसिंह मिले, ध्रुव को मिला गगन में सर्वोत्तम स्थान ।
मीरा को प्रभु कृष्ण मिले, वो भक्तमयी धरती है हमारी ।
सदियों से जिस धरा पे रामनाम का गुणगान हो, वो धरा है हमारी ।
सीयराम मय सारी दुनिया है, यही सादगी है हमारी ।
हम भारत के वासी है, संस्कृति हमारी पहचान है ।।6।।

राम, कृष्ण, महावीर, बुध्द हुये, वो ईश्वरीय धरती है हमारी ।
रामचरित अनुकरणीय, कृष्ण बंदनीय, शान्ति प्रतीक है बुध्द व जितेन्द्रिय है महावीर ।
हर नर से हम सत्गुण सीखे, दुर्गुणों से रहें हम कोशों दूर ।
रामचरित का हम अपनाते यहीं हमारी शान है ।।7।।

हरिश्चन्द्र, वासुदेव, कर्ण आदि महापुरूष हुये ।
वो महापुरूषों की पतितपावनी धरती है हमारी ।
बिक गये अपने सत्-स्वभाव के कारण ये महापुरूष ।
यही पुरातन सच्चाई है हमारी ।।8।।

कलिकाल में भी हुये हैः-
वेदों के प्रचार-प्रसार-प्रचारक महर्षि दयानंद सरस्वती व आध्यात्मिक गुरु विवेकानंद है ।
इनके महान कार्यों से, भारत और भी महान है ।
सारी जहां में फैली इनके सत्-विचार है ।
और सीखते जहां इनसे नेकीपन और सत्-विचार है ।
हम भारत के वासी है, संस्कृति हमारी पहचान है ।।9।।

लूटी संस्कृति डूबी सभ्यता खो गये हम पर संस्कृति में ।
निज संस्कृति भूले, निज भाषा भूले, निज-निज करते-करते निज-स्व-अपना सर्वस्व हम भूले
अब कैसे कहें हम,
हम भारत के वासी है, संस्कृति हमारी पहचान है ।।10।।

गँवा दिये हमने अपनी मान-मर्यादा को ,
भूले गये हम सावित्री, सति अनुसूईया व मा जानकी को ।
राम को भूले, कृष्ण को भूले और भूल गये हम सत्-पुरूषों के सत्-विचारों को ।
और अब चल सत्मार्ग छोड़ कुमार्गों पे ।।
अब कैसे कहें हम,
हम भारत के वासी है, संस्कृति हमारी पहचान है ।।11।।
 विकास कुमार

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