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हरी हरी बाग में

हरी हरी बाग में
सुगंध देती साग हैं
बह रहा पानी मिट्टी की बुझी आग है
झूम रहे तरु
मानो खेल रहे फाग हैं
हरियाली घास की मखमल
सा बाग है
बौर लगी आम में
गीतों की राग है
त्रिविध समीर चले
तन मन के जगे भाग हैं
व्याकुलता भाग गयीं ज्यूँ
नेवले से नाग है
छोड़ कर ना जाए कही
जागता अनुराग है
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