हवाओं के रुख से आहट पहचान ले कोई,
ऊँगली जो उठे तो मुट्ठी बाँध ले कोई,
कोई करे अनदेखी और बिन कहे सब जान ले कोई,
साफ़ नज़र आता है क्यों न इसे मोहब्बत मान ले कोई।।
राही (अंजाना)
हवाओं के रुख से आहट पहचान ले कोई,
ऊँगली जो उठे तो मुट्ठी बाँध ले कोई,
कोई करे अनदेखी और बिन कहे सब जान ले कोई,
साफ़ नज़र आता है क्यों न इसे मोहब्बत मान ले कोई।।
राही (अंजाना)