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हसीना

सूर्योदय सी केसरी सुनहरी,
रश्मिया तुम्हारी सखी सहेली।
मोतियों सी जगमग हंसी तुम्हारी,
सहस्त्र फूलों के इत्र सी महक तुम्हारी।
दिलकश निगाहें होंठ अंगारे,
घनघोर घटा सी जुल्फें तुम्हारे।
चाल बड़ी मदमस्त नशीली
सुंदरता की तुम पैमाइश,
मेरे दिल की तुम ही हो फरमाइश।
मुझ में तुम क्यों घुलती जा रही हो
रूह में मेरी समाती जा रही हो,
होश क्यों मेरे गुम हो रहे हैं
जेहन पर मेरे तुम छा रही हो।
डूबता जा रहा हूं मैं इश्क में तेरे,
तेरी हस्ती में मैं समाता जा रहा हूं।
खत्महो रहा हूं!!!
नहीं मुझ में कुछ बाकी।
मैं हूं या यह तुम हो???
या तुझमें मैं यूं गुम हूं।
निमिषा सिंघल

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