हाथ खाली रह गया है।
पास था जो बह गया है।।
नाज़ है उनको, महल पर
औ शहर ही बह गया है॥
कुछ यहाँ मिलता नहीं है
कोइ हमसे कह गया है।।
लूटते हैं कैसे अपने
देख आँसूं बह गया हैं।।
पैसे का ही खेल है सब
कौन अपना रह गया है॥
छोड़ गए वो भी तंगी में
साथ हूँ जो कह गया है।।
देख ली हमने ये दुनिया
कुछ नहीं औ रह गया है॥
देख लो तुम नातेदारी
कौन किसका रह गया है॥
तू दुखी मत हो,ऐ “अवसर”
फ़िर खुदा ये कह गया है॥
ओमप्रकाश चंदेल “अवसर”
पाटन दुर्ग छत्तीसगढ़
7693919758