वो भी योद्धा है जो जंग के मैदान में हार जाते हैं
पूंछता नहीं कोई समाज वाले भी मार जाते हैं
सहानुभूति की जरूरत है हारे हुए योद्धा को
पा जाए सहारा तो मंजिल के द्वार जाते हैं
वो भी योद्धा है जो जंग के मैदान में हार जाते हैं
पूंछता नहीं कोई समाज वाले भी मार जाते हैं
सहानुभूति की जरूरत है हारे हुए योद्धा को
पा जाए सहारा तो मंजिल के द्वार जाते हैं