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हिंदी कविता

हिंदी ग़ज़ल
२४/०५/२०२०
रचनाओं के सुर-सागर में उतर गया हूं।
सृजनशीलता मैं भी देखो कर गया हूं।

कल्पनाओं की कोपलताएं फूट पड़ी हैं।
शब्दों की बगिया में पलछिन ठहर गया हूं।

डोर प्रीत की थाम ढूंढता हूं प्रियतम को।
जिज्ञासाओं के गांव – गांव, शहर गया हूं।

मझधारों ने है किया इशारा तुफानों का।
तटबंधों को छोड़, नदी में उतर गया हूं।

झील आंसुओं की आंखों में बन आई है।
विरह-मरूस्थल से प्यासा गुजर गया हूं।

जा पहुंचा हूं गीतों की गहराइयों तक मैं।
और कभी गीतों की लहरों में पसर गया हूं

गोविंद कश्यप “वीरा”

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