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हिन्दी कविता: चिता के फूल

“चिता के फूल”
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मेरी नाकामयाबी पर
हँसकर वो चल दिये,
मेरे ऊपर लानत के
हजार कथन वह कह गये…
हम भी चल दिये…
इस जहान से
नाउम्मीदी का एक बोझ लेकर,
मेरी अर्थी के फूल वो
मुस्कुराकर
सजाकर चल दिये…
ना रोंका मुझे,
ना रोये चिता पर
बस एक अविस्मरणीय
मुस्कान से विदा करके मुझे वो चल दिये…
हम तड़प रहे थे
जलती लकड़ियों के सुलगते धुंए में!
वो हाथ लहराकर खुशी से चल दिये…
कितना क्या सोंचा था !
पर उन्हें इतना बेरहम ना सोंचा था
मेरी चिता के फूल’
अभी ठण्डे भी ना हुए होंगे
और वो मेंहदी लगाकर चल दिये….

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