अपने देश में अपनी भाषा
बदनसीब हो गई
आगे आओ युवा देश के
हिंदी गरीब हो गई
मातृभाषा है राष्ट्रभाषा है
फिर क्यों तुम शर्माते हो
प्रणाम छोड़कर गैरों से तुम
हाय हेलो अपनाते हो
मीरा तुलसी के देश की
कैसी तहजीब हो गई
आगे आओ युवा देश के
हिंदी गरीब हो गई
अंग्रेजी शासन से तो मुक्त हुए
पर भाषा से मुक्ति कब मिल पाएगी
अपने देश में अपनी भाषा
कब तक यूं शर्माएगी
आयोजन कर – कर खाते-पीते
दिनकर और रसखान की हिंदी लजीज हो गई
आगे आओ युवा देश के हिंदी गरीब हो गई
वीरेंद्र सेन प्रयागराज