हिमराज के सौंदर्य रीझे
तपस्विनी सी बैठी थी
नजर को अपने बनाई थी सारंग
शीलीमुख नजरे ऐठे थी
स्वेत वस्त्र वो करे थी
धारण वनमाला गल पहने थी
राजमुकुट सी धरे थी सीस पे
लालू पुष्प की टहनी थी
सजा लिए थे ओस के मोती
अपनी श्वेत पोशाक पे
हंसिनी की हो होड़ नहीं
चाहे गहने पहनो लाख के
शांत सरोवर ने पहना दी
भवर की एक करधनी थी
सरोवर दर्पण देखके रीझे
हिमालय की हंसिनी थी