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हिल जाना

गुलाब खिल जाना,
सुंगध मिल जाना
हवा चले जब भी,
पात हिल जाना,
पता चले कि गीली मिट्टी है,
भावना लिख दी है,
कहीं है रेत पड़ी
कहीं पे गिट्टी है।
कहीं हैं ठोस ईंटें
कहीं भरी सीटें,
भवन तो बन गया है
चलो ताली पीटें।

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