हृदय पर कितने पत्थर रखे हैं
हिसाब नहीं
हम तुम्हें याद कर कितना रोए हैं हिसाब नहीं।
तुम देते रहे सितम अपनी मदहोशी में
हमारे जमीर को कितनी चोट लगी हिसाब नहीं।।
हृदय पर कितने पत्थर रखे हैं
हिसाब नहीं
हम तुम्हें याद कर कितना रोए हैं हिसाब नहीं।
तुम देते रहे सितम अपनी मदहोशी में
हमारे जमीर को कितनी चोट लगी हिसाब नहीं।।