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होते हैं

एक युद्ध में कितने युद्ध छिपे होते हैं
हर बात में कितने किंतु छिपे होते हैं

नींव का पत्थर दिखाई नहीं पड़ता अक्सर
रेल चलती है पर पटरियों के जैसे सिरे दबे होते हैं

जिसने क़त्ल किया उसका पता नहीं चलता
जब औरों के कंधों के सहारे बंदूक चले होते हैं

रक्षा कवच होता है धूर्त और मक्कारों के पास
फंसते वही हैं जो लोग भले होते हैं

यकीन उठता जाता है इंसान का इंसानों से
छांछ भी फूंक कर पीते हैं जो दूध के जले होते हैं

अक्सर शरीफों पर लोगों का यक़ीन नहीं होता
यक़ीन उन पर ही करते हैं जो थोड़ा मनचले होते हैं ।

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