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ख़ामोशी

चुप रहता हूँ आजकल ,

कम बोलने लगा .

देख लिया दुनिया को मैंने ,

 जान लिया सच्चाई को .

अब दिल बरबस रो पड़ता है,

इस झूठी तन्हाई पर .

इस ख़ामोशी को तुम क्या जानो ,

पाया कितनी मुद्दत बाद .

अब तो सन्नाटे की भी आवाज़ सुनाई देती है ,

कितना सुन्दर आँखों को दुनिया दिखलाई देती है .

चुप हो जाओ , चुप रहने दो , 

कुछ न कहूँगा आज के बाद .

ख़ामोशी कितनी प्यारी है , चादर लेके चुपके चुपके 

मीठी सी गहराई में , सोने की इच्छा है बस 

जी  भर के मुझको सो लेने दो , जाने दो ख़ामोशी से

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