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ग़ज़ल

“ हद से बढ़ जाए कभी गम तो ग़ज़ल होती है ।
चढ़ा लें खूब अगर हम तो ग़ज़ल होती है ॥“

इश्क़ है—रंग , हिना—हुस्न ; याद है : खूशबू ।
फिर भी भूले न तेरा गम तो ग़ज़ल होती है ॥

कौन परवाह किया करता है आगोश में यहाँ ।
याद में आँख हो पुर—नम तो ग़ज़ल होती है ॥

लब—औ’–रुखसार ……….. ‘मरमरी वो बदन ।
संग मिल जाएँ पेंच-औ’-खम तो ग़ज़ल होती है ॥

चुप हो धड़कन ———- जुबां खामोश मेरी ।
चले वो ख्वाब में छम-छम तो ग़ज़ल होती है ॥

ख्वाब पलकों पे सिसकते हैं अरमाँ बहते हैं ।
हो एहसास में ‘गर दम तो ग़ज़ल होती है ॥

याद कर – याद भी कर तेरा सिमटना मुझमें ।
आह ! होठों पे जाए जम तो ग़ज़ल होती है ॥

उदास रात के गमगीन साये में अक्सर ।
पिरोये नींद कोई गम तो ग़ज़ल होती है ॥

न खुशी — न कोई रंज, न शिकवा ‘अनुपम’।
निकले न फिर भी दम तो ग़ज़ल होती है ॥
: अनुपम त्रिपाठी
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