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ज़नाब आहिस्ता आहिस्ता !

सच होते जा रहे हैं मेरे ख्वाब आहिस्ता आहिस्ता,
वो दे रही मेरी बातों के जवाब आहिस्ता आहिस्ता,

सालों से बेकरार किया है  मेरे दिल को जो उन्होंने,
लूँगा मैं उनसे अपना यह हिसाब आहिस्ता आहिस्ता,

धीमी आँच पर पका है मेरे जज्बातों का सिलसिला,
चढ़ने लगा मुझ पर उनका शबाब आहिस्ता आहिस्ता,

ढल गई है अब मेरे इंतजार की स्याह रात,
उभर रहा है अक्स पर आफ़ताब आहिस्ता आहिस्ता,

वो सुर्ख़ चेहरा जिस पर क़ुर्बान दिलोजान,
हो रहा है सामने बेनक़ाब आहिस्ता आहिस्ता,

जिस नूर की एक झलक ने दीवाना कर दिया,
क्या होगा जब उतरेगा हिज़ाब आहिस्ता आहिस्ता,

ऐसा ना हो मैं भूल जाऊँ सारे होशोहवास,
आना मेरी बाहों में मगर ज़नाब आहिस्ता आहिस्ता,

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