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ज़मीन तुम हो

मेरी हर इक ग़ज़ल की अब तक ज़मीन तुम हो …..
मेरा अलिफ़ बे पे से चे और शीन तुम हो ….

जज़्बात से बना मैं इक प्यार का नगर हूँ
रहते हो इस में तुम ही इस के मकीन तुम हो …..

इन क्रीम पाउडर का एहसान क्यूँ हो लेते
मैं जानता हूँ तुमको कितने हसीन तुम हो ….

तुमको कोई तो समझे संसार कोई साँसे
लेकिन किसी की ख़ातिर कोई मशीन तुम हो ….

टूटोगे तुम कभी तो बिखरूंगा मैं ज़मीं पर
कुछ और हो न हो पर मेरा यक़ीन तुम हो …

पंकजोम ” प्रेम “

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