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ज़ाहिर

साथ निभाने के लोगों के तरीके अजीब हैं,
अपनों से भी ज्यादा लोग गैरों के करीब हैं,

मर चुके हैं एहसास यूँ दिल की हिफाज़त में,
के धड़कन में नज़रबंद वो कितने अदीब हैं,

गुमराह हैं नासमझ इशारे खुदा के ठुकराते हैं,
क्या करें राही सबके अपने अपने नसीब हैं।।।

राही अंजाना
अदीब – विद्वान

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