मेरा जीवन कब मेरा है
बस आती जाती सांसें हैं
इसमें सुख दुख दूजों का है
वे दूजे मेरे अपने हैं !
जब जब कोई मेरा अपना
हँसता है मैं हंस लेती हूँ !
जब कहीं कोई मेरा अपना
रोता है मैं रो देती हूँ!!
हर चोट लगे जो अपनों को
मेरे ही तन पर पड़ती है!
जब आहत हो मन अपनों का
मेरी आत्मा तड़पती है!
मैं जिनकी ख़ातिर जीती हूँ
वे सारे मेरे हिस्से हैं,
मैं एक किताब सरीखी हूँ
वे सारे मेरे क़िस्से हैं !
ये वात्सल्य से पूर्ण ह्रदय
कब अपने लिये धड़कता है!
बस देख देख अपनी थाती
इसमें स्पन्दन बढ़ता है !!
हाँ ये अपने जो हैं मेरे
बस चन्द मात्र ही संख्या में
प्रभु कर दो मेरा मन विशाल
जुड़ जाऊँ सब से कड़ियों से!!
फिर कहाँ रहे कोई राग द्वेष
न बैर कहीं भी रहे शेष
हम संतति सब परमात्मा के
वसुधा हो मात्र कुटुम्ब एक !