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आँगन में जो फुदक रही थी

आँगन में जो फुदक रही थी
एक छोटी सी चिड़िया!
दौड़ी उसे पकड़ने
उसके पीछे छोटी बिटिया!!

बोली मैंने आज पढ़ा है
तू है दुर्लभ प्राणी!
तुझे संजोना है हम सब को
देकर दाना पानी !!

गौरैया ने तनिक ठहर
धीरे से पंख हिलाये
भाव करुण से उस पक्षी की
आँखो में आ छाये!

बोली बिटिया तू तो जाने
क्या तेरा दायित्व
लेकिन तू ये समझ
तेरा भी ख़तरे में अस्तित्व!

कैसे तुमसे कहूँ
तुझे है इतना नहीं पता
मेरा संकट अगर प्रदूषण
तेरा तेरे मात पिता!!

कुछ हत् भागे नहीं चाहते
हो बेटी का जन्म
बोझ समझते हैं वे तुमको
ऐसे उनके कर्म !

कभी गर्भ में कर देते हैं
वह तेरा ही अन्त
अगर जन्म तू फिर भी ले
तो कतरें तेरे पंख !!

मैं तो उड़ती खुले गगन में
फिरती हूँ स्वच्छन्द
तू फँसती है अदृश जाल में
पिंजड़े में है बन्द !!

तेरे चारों तरफ़ शिकारी
करते तुझ पर वार
नहीं असर कर पाती उन पर
कोई तीर तलवार !

हाल रहा जो यही ! प्रजाति
मेरी मिट जायेगी
लेकिन बिटिया तू भी अब
दुर्लभ ही कहलायेगी !!!

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