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गिरते गिरते ही सम्भलते हैं सब

गिरते गिरते ही सम्भलते हैं सब
फ़िर कहीँ आगे निकलते हैं सब

ऐसे क़ाबिल तो नहीँ बनता कोई
पहले जलते हैं पिघलते हैं सब

कौन बच पाया हमें बतलाओ
दिल जवानी मॆं फिसलते हैं सब

दिल को मिलता है महब्बत से सुकूँ
वरना बस आग उगलते हैं सब
अपनी खुशियों का तो इज़हार नहीँ
दर्द आँसूओं मॆं ढलते हैं सब

मैं हूँ मिट्टी का तराशा इंसा
हीरे कानों से निकलते हैं सब

आज़ भी देखो वही है आरिफ
वक़्त के साथ बदलते हैं सब
आरिफ जाफरी

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