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जमाने बीत गए जिनको भुलाये हुए
आजफिर हैं क्यो याद वही आये हुए

कितने बेरुखी से तोड़े थे वो दिल को
दिल के टूकड़ो को हैं हम सम्भाले हुए
सोचते थे न आएगी क़यामत कभी
ये क्या हुआ वो हैं दर पे आये हुए
जिसे छूने की चाहत में उम्र गुज़ार दी
ज़नाज़े को मेरे हैं वही गले से लगाये हुए

जिन्दा था तो तन्हाई ने मार डाला,मौत पे
अपने तो ठीक दुश्मन भी रोते हैं आये हुए
“विपुल कुमार मिश्र”

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