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26 जनवरी पर ( गरम दल की शायरी )

शोर बहुत है बाहर.. कि अंदर चुप ; अब रहा नहीं जाता !
क्या कहूँ उन बहरों से
इस दिल की बात..
बिना धमाके के जिनको कुछ समझ नहीं आता !! :- प्रेमराज आचार्य

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