Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
rajesh arman
हर निभाने के दस्तूर क़र्ज़ है मुझ पे
गोया रसीद पे किया कोई दस्तखत हूँ मैं
राजेश'अरमान '
Related Articles
हर जुनूँ की कोई वज़ह
हर जुनूँ की कोई वज़ह होती है हर वज़ह ज़ूनू की सजा होती है हर शख्स सजा-याफ्ता है यहाँ , फर्क सालो का, पर सजा…
अच्छाई नहीं मिलती
झूठों की नगरी है साहब, यहाँ सच्चाई, नहीं मिलती…. बुराई के हैं अनगिनत किस्से, पर अच्छाई, नहीं मिलती…. आधे घंटे मे पहुँच जाता है, लोगों…
अच्छाई नहीं मिलती
झूठों की नगरी है साहब, यहाँ सच्चाई, नहीं मिलती…. बुराई के हैं अनगिनत किस्से, पर अच्छाई, नहीं मिलती…. आधे घंटे मे पहुँच जाता है, लोगों…
जैसे रहता हो समुन्दर तन्हा, किनारों की तरह…….
पहली मोहोब्बत का तकाज़ा क्या करे हम वो मिला था हमको बहारों की तरह दीवानगी इस से बढ़ कर और क्या होगी हमने चाहा था…
कैसे होते हैं……!
कैसे होते हैं……! ——————————— कोई पहचान वाले अनजान कैसे होते हैं जानबूझ कर कोई नादान कैसे होते हैं बदलता है मौसम वक़्त और’लम्हें सुना हेै–…
वाह