Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
Related Articles
आज़ाद हिंद
सम्पूर्ण ब्रहमण्ड भीतर विराजत ! अनेक खंड , चंद्रमा तरेगन !! सूर्य व अनेक उपागम् , ! किंतु मुख्य नॅव खण्डो !! मे पृथ्वी…
अलख जगे आकाश
तन कुँआ मन गागरी, चंचल डोलत जाय ! खाली का खाली रहे, परम नीर नहिं पाय !! मोती तेरा नूर मैं, देखूं चारों ओर…
अलख जगाआकाश
तन कुँआ मन गागरी, चंचल डोलत जाय ! खाली का खाली रहे, परम नीर नहिं पाय !! मोती तेरा नूर मैं, देखूं चारों ओर…
अलख जगा आकाश
‘मोती’ रोवत थान पर, माई गयी आकाश ! किसकी माई कब गयी, वह तो तेरे पास !! अलख जगा आकाश में, सुना जो भागत…
सूखी स्याही
~सूखी स्याही~ केवल शब्दों का झुण्ड है, मेरी कविताऐं लोगों के लिए, सचिन* पर जब हम बैठते है पढ़ने को ,…
Responses