घर पर ही डेरा जमाया
मेरा सूट पूछ रहा साड़ी से,
क्या हुआ बहन, बहुत दिन हुए
नहीं गए, कहीं गाड़ी से
मैडम भी नहीं दिखती आजकल,
अब तो मैं भी डरने लगा हूं..
मैडम को देखने को , तरसने लगा हूं
घबरा कर मेरी चुनरी बोली…..
भगवान ना करे, कहीं मैडम निकल तो नी ली
नीली टी-शर्ट बोली अलसाई, उसने थोड़ी ली अंगड़ाई
चुप किया पहले सबको, फिर हंस कर बताया
कोविड फैल रहा है दोस्तों…..
सर और मैडम ने घर पर ही डेरा जमाया।
*****✍️गीता*****
वस्त्रों का मानवीकरण किया गया है।
अतिसुंदर
बहुत बहुत धन्यवाद आपका भाई जी 🙏
बहुत सुन्दर
बहुत खूब जी
शुक्रिया पीयूष जी 🙏
लाजवाब
बहुत बहुत धन्यवाद कमला जी
आपकी अद्वितीय क्षमता की द्योतक़ हैं ये पंक्तियाँ। बहुत ही सुंदर तरीके से वस्त्रों का मानवीकरण किया है आपने। जितनी तारीफ की जाए कम है। keep it up
धन्यवाद सर, बहुत अच्छी समीक्षा की है आपने । मुझे लेखन के लिए प्रेरणा मिलती है आपकी समीक्षा और कविता की सुंदर सराहना से। सादर अभिवादन सतीश जी
वस्त्रों का बहुत ही सुन्दर मानवीकरण👏👏
बहुत शुक्रिया सीमा जी