जिंदगी को जिंदगी से
जिंदगी को जिंदगी से जुदा कर रखा है,
हमने अपनी मौत का गुनाह कर रखा है।
बस्ती को रोशन करने की ख़ातिर हमने,
अपना घर शब-भर 1 जला कर रखा है।
रह न जाएं तनहा इस जहाँ में कहीं हम,
हमने ख़ुद को भीड़ में छुपा कर रखा है।
सोये नहीं हैं हम इक ज़माने से मगर,
आँखों में इक ख़्वाब सजाकर रखा है।
आओ खेलें लगाकर दाव पर दर्द को,
हमने बहुत सारा दर्द जमाकर रखा है।
मयख़ाने 2 अक्सर जाने वालों ने घर में,
शरबत का इंतज़ाम करवाकर रखा है।
प्यार का सबक सिखाता था जो हमको,
आस्तीन में खंजर उसने छुपाकर रखा है।
1. रात भर; 2. मदिरालय।
यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना
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