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आपकी यादों को

आपकी यादों को अश्कों में मिला पीते रहे,
एक मुलाक़ात की तमन्ना में हम जीते रहे।

आप हमारी हक़ीक़त तो कभी बन न सके,
ख़्वाबों में ही सही, हम मगर मिलते रहे।

आप से ही चैन-ओ-सुकूँन वाबस्ता1 दिल का,
बिन आपके ज़िंदगी क्या, हम बस जीते रहे।

सावन, सावन-सा नहीं तनहाई के मौसम में,
आपको याद करते रहे और बादल बरसते रहे।

जब देखा पीछे मुड़कर हमने आपकी चाह में,
सूना रास्ता पाया, जिसपे तनहा हम चलते रहे।

1. जुड़ा हुआ।

 

यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना

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