पहली बारिश मे टहलना
पहली बारिश मे टहलना…. देखना कभी शाम ढलना… तितलियों के पर पकड़ना…. ख्वाब का आँखो मे पलना.. बात छोटी है मगर मायने रखती है…. रूठे…
पहली बारिश मे टहलना…. देखना कभी शाम ढलना… तितलियों के पर पकड़ना…. ख्वाब का आँखो मे पलना.. बात छोटी है मगर मायने रखती है…. रूठे…
चलो ना….. खो जाये दोनो….. उस दुनिया मे …. जहाँ सड़को पर किताबो के किरदार मिलते हो….. जहाँ तस्वीरें बात करती हो…. जहाँ बारिश ना…
शाम अब ऐसी लगती है जैसे बीते दिन का पुराना अखबार रखा हो ना कोई नयी खबर है… ना कहने को कोई किस्सा… ना धूप…
बारिश के मौसम मे अकसर अदरक वाली चाय की खातिर…. हल्की सी एक “walk” लेकर… “कॉलेज” की “कैंटीन” तक हो आते थे दोनो… चाय क्या…
तुम आहिस्ता से पर्दे खोल देना सुबह खिड़की के…. मैं बन के धूप चौखट से तुम्हारी छन के आऊँगा… जब पंछी चहचायेंगे तुम्हारे घर के…
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