“यही मैं सोच-सोचकर हैरान!!!! “….
ऐक हजारों धरती माता, ऐक ही आसमान, मजहब के झगड़ों में क्यूँ उलझ रहा इंसान, यही मैं सोच -सोचकर हैरान, यही मेै सोच-सोचकर हैरान, भारी…
ऐक हजारों धरती माता, ऐक ही आसमान, मजहब के झगड़ों में क्यूँ उलझ रहा इंसान, यही मैं सोच -सोचकर हैरान, यही मेै सोच-सोचकर हैरान, भारी…
पाकिस्तान की औखात को देखकर ये भाव उठे, कोई गलती हो तो क्षमा करना — जल जला उठा वो सैनिक, जिसमें जान बाकी है, लहु…
मैं आर देख रहा था, मैं पार देख रहा था, बंद लतीफों की खड़े -खड़े मल्हार देख रहा था, सोचा था तंग आकर लिखूंगा ये…
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