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Ek Kavi….

अभी थोड़ा कच्चा हूँ, दिल का मैं सच्चा हूँ,
     कवियों की महफ़िल मैं एक छोटा बच्चा हूँ|
लिखे है कई ग्रन्थ कवियों ने दुनिया पर,
     अब कुछ पंकितियां मैं कवियों पर लिखता हूँ|

लाखों अरमानो और ख्वाबो को पालते हैं,
       अपनी भावनाओ को शब्दो मैं ढालते है|
न दौलत न शोहरत न तवज्जो चाहते हैं,
       बस अपनी सोच को आप तक पहुचाना चाहते है|

लिखते हैं, पड़ते हैं, पड़कर मिटाते हैं,
       फिर कुछ सोचकर आगे बढ़ाते हैं|
गाते हैं, सुनते हैं और गुनगुनाते हैं,
       इस तरह कवी अपनी कविता बनाते हैं|

ज्वलनशील मुद्दों को हंस कर बताते हैं,
       हँसते हँसते वो कटाक्ष कर जाते है|
शब्दों का संग्रह नहीं सोच का सागर है|
       सागर की बूंदों से वर्षा करते हैं

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